सूर्य! तुम क्यों मकर में आ गये
मकर संक्रांति
……….
उत्तरायण हो गए तुम
राशि बदल दी तुमने
धनु से मकर में आ गए
तुम सूर्य हो,
अदम्य ओजस्वी।।
असम्भव क्या तुम्हारे लिए
न भी होते तो कौन टोकता
न बदलते राशि तो क्या होता
शुभकामनाओं के आकाश में
एक सितारा रोज चमकता है
अन्यथा,
सब जानते हैं यहां
समस्याओं की संक्रान्ति में
कोई सूर्य उदय नहीं होता..
हथेली पर सजी सूर्य रेखा
कुंडली मे सूर्य की दशा सिर्फ
आह्लाद है जीवन के चक्र का
कुम्भ है कुंभियों में खोई
हमारी मान्यताओं का..
क्यों कि हम जानते हैं…
सूर्य कभी हस्ताक्षर नहीं करता
रश्मि रथ खुद हांकना होता है
आकाश में होती होगी हे सूर्य!
जीवन के क्षितिज पर कभी
मकर संक्रांति नहीं होती।
कभी राशि नहीं बदलती।
बनना पड़ता है स्वयं सूर्य
और देना पड़ता है स्वयं
को स्वेत का अस्तित्व अर्घ्य।।
सूर्यकांत द्विवेदी