सूर्य तुम को खुद लजाना चाहिए-
गजल (२१ मात्रिक )
२१२२ २१२२ २१२
आदमी को मुस्कुराना चाहिए।
दर्द गम अपना छिपाना चाहिए।1
हर हकीकत दूर से दिखती नहीं,
और ठोडा पास आना चाहिए।2
टूट कर यह दिल बिखर जाता सदा,
सोच कर ही दिल लगाना चाहिए।3
नफरतों से कुछ नहीं हासिल हुआ,
प्रेम का दीपक जलाना चाहिए।4
मौत का पहरा लगा हर सांस पर,
उम्र अपना भूल जाना चाहिए।5
यार कैसे आदमी हो आप भी,
मुस्कुराने का बहाना चाहिए।6
सत्य सुनना चाहता है कौन अब,
हर किसी को बस फ़साना चाहिए।7
धर्म का विष आदमी में जो भरे,
कान के नीचे बजाना चाहिए।8
तंग कपड़ों में दिखे नारी कहीं,
‘सूर्य’ तुमको खुद लजाना चाहिए।9
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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