सूर्य को आंखें दिखाना आ गया
गीतिका
सूर्य को आंखें दिखाना आ गया।
आंधियों में पग जमाना आ गया।
फौजियों के हौसले को देखकर।
मुश्किलों में पग बढाना आ गया।
मृत्यु के मुख धैर्य उनका देखकर।
दर्द में भी मुस्कुराना आ गया।
शहरदों के बीच खुशियाँ ढूंढ कर।
बाजुओं में नभ समाना आ गया।
दुश्मनी से बाज जो आते नहीं।
शस्त्र भी हमको उठाना आ गया।
कोयले में ढूँढने हमको चमक।
आग में उसको जलाना आ गया।
शौर्य के पन्ने पुराने कुछ पलट।
शत्रुओं को अब डराना आ गया।
लौह को बस लौह ने काटा समझ।
मृदु करों को शर चलाना आ गया।
कृष्ण का उपदेश कर करना समर।
धर्म ‘इषुप्रिय’ को निभाना आ गया।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)