सूर्य उगाएँ
आओ मिलकर नए साल का सूर्य उगाएँ
दुश्चक्रों में फँसी रोशनी कैसे निकले
मन में इतनी बर्फ जमी है कैसे पिघले
तारीखों को दिए बचन हम भूल न जाएँ
बाँट रही जो घर को
वह दीवार ढहा दें
रुकी हुई गंगा की धारा
पुन: बहा दें
थकी हुई बूढ़ी आँखों को
नहीं रुलाएँ
खूँटी पर जो टँगा कलेंडर
अब तो बदलो
सुबह नई तो सोच नई हो
मन को बदलो
धर्म जाति से ऊपर उठकर
हाथ मिलाएँ
आओ मिलकर नए साल का
सूर्य उगाएँ।।