सूरत बलां की खूबसूरत
**सूरत बलां की खूबसूरत (ग़ज़ल)**
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क़ाफ़िया-आ,जा,ला,खा,भा,रदीफ़-रही
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प्यारे सनम क्यों याद है तड़फा रही,
सूरत बलां की खूबसूरत भा रही।
आ पास मेरे बैठ क्यों हो तुम खफ़ा,
हो दूर तुम क्यों खड़ी घबरा रही।
देती मुझे धोखा सदा काली घटा,
यादें यहाँ दिलदार तन को खा रही।
पल में किधर तुमने नज़र है फेर ली,
बिन बात हम से दूर हो क्यूं जा रही।
तेरी वजह से मैं सदा दर पर खड़ा,
आँखे झुकाकर खड़ी हो शरमा रही।
है पास मनसीरत सदा दिल में बसे,
हो जिंदगी में तुम खुशी है ला रही।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)