सूरते हाल कहाँ
साल बदलता है सूरते हाल कहाँ
उम्र गुजरने का भी मलाल कहाँ।
एक अरसा हो गया खुद से मिले
रखता हूँ मैं अपना खयाल कहाँ ।
हाँ जश्न मनाओ तुम नए साल का
मैं कहाँ और अब ये बवाल कहाँ ।
घर,दफ़तर बीवी औ बच्चों से परे
माज़ी,मुस्तकबिल औ हाल कहाँ ।
कभी थे हम भी क्राँतिकारी नौजवाँ
अजय में अब रहा वो उबाल कहाँ
-अजय प्रसाद