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17 Jun 2024 · 1 min read

सूरज!

सूरज!
तुम्हें क्या हो गया है
बहुत आग बबूला हो
इतना आग बबूला क्यों हो?
इस धरती को तो
तुमने ही जन्म दिया था न!
परम -पिता परमेश्वर हो
इसके संरक्षक भी तुम्हीं हो।

फिर क्या है?
इस धरती का कसूर:
प्राणियों को प्राण देती है
प्रकृति को मनुहार देती है
अन्न फल फूल देती है
जड़ी बूटी देती है
बख्श दो इसे।
गर्मी तो है ही
मौसम/ ऋतुएं तो आती है
आती है तो जाती भी है।
क्या जला ही दोगे इसे
प्राणियों के प्राण हर ही लोगे
तो कौन बचेगा?
क्या बचेगा?

शांत हो जाओ, सूरज!
तुम्हीं से जीवन है
तुम्हीं से वन है
अपने पुत्र को, अपनी पुत्री को
हर पिता क्षमा करता है
उसके भविष्य की चिंता करता है
तो इसकी किसी भी खता को माफ कर दो
इसकी खुशहाली इसे लौटा दो
तपिश काम कर दो
बादल का टुकड़ा भेजो और
इसे मनभर बरसने दो।
****************************************** @स्वरचित और मौलिक:
घनश्याम पोद्दार, मुंगेर

Language: Hindi
20 Views
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