सूरज
सूरज,
तुम क्यों जलते हो इतना?
कहाँ से आती है तुम्हारी ज्वाला?
क्यों इतनी तपन है तुममें?
कैसे उठाए फिरते हो इतना ताप?
मैं जब भी महसूसता हूँ –
तुम्हारी तड़प!
उत्तप्त हो उठता है –
मेरा रोम-रोम!!
आखिर,
तुम्हें किसने जलाया होगा-
प्रथम बार!!!
मैं सोचता हूँ –
एक बार जलने में,
असंख्य अग्निशिखाएँ…
अनंत तापपूँज….
एक साssssथ!प्रज्वलित हो उठे होंगे.
तब तुम जले होगे!!!!
जलना आसान नहीं है,
नहीं तो तुम सूरज न होते।
हर कोई सूरज नहीं होता।