सूरज से मुलाक़ात
आज कई दिन बाद..
मैंने उगता सूरज देखा..
शायद हर रोज ऐसे ही..
कर्मठ सा, आता होगा..
पर मुझे नहीं पाता होगा..
पर मैं तो होता हूँ….
फिर क्यों मुझे..
ये नया सा लगा?
आज कई दिन बाद..
मैंने उगता सूरज देखा..
ये हर रोज की तरह..
प्रचंड नहीं था…
थोड़ी नरमी पहने हुए..
सौम्यता लिए लगा..
थोड़ी देर..
कई दिन बाद,
हमारी नज़रें मिली..
कुछ कह रहा था..
पूछ रहा था..
कहाँ थे इतने दिन?
क्या कहीं गए हुए थे?
मैंने कहा, क्या मजाक है..
मैं तो रोज देखता हूं..
तुम रोज होते हो..
कुछ ज्यादा तेज..
फिर थोड़ा मुस्कुरा कर बोला..
मै वो नहीं हूँ…
जिसे तुम रोज देखकर..
कर देते हो अनदेखा..
मैं रोज देखता हूँ..
तुम कुछ ज्यादा ही..
व्यस्त हो..
जो मुझसे बात नहीं कर पाते..
मैं तो रोज भेजता हूं..
थोड़ा प्रकाश लिए…
सन्देश देती किरणे…
पर नहीं पकड़ पाती..
तुम्हारा नेटवर्क…
लौट कर भी नहीं आती…
मेरे पास..
आज कई दिन बाद मैंने…
उगता सूरज देखा..
मैंने नज़रें हटा कर..
अपना मोबाइल संभाला…
उसमे नेटवर्क नहीं था…
शायद आज मैंने उसका..
नेटवर्क पकड़ लिया…
पर इस नेटवर्क में..
कोई तलाश नहीं है..
थोड़ी रोशनी है..
जो कृत्रिम नहीं है..
थोड़ा सुकून हैं…
मैं थोड़ा परेशान हो गया…
सूरज फिर बोला..
दुखी मत हो…
कभी कभी आते रहा करो..
सूरज के ये शब्द..
कुछ उदास… लगे..
शायद इनमे याचना नहीं..
पर आग्रह जरूर था..
एक अहसास…
मुझे मिले जुली दिलासा दे गया..
कि..
गोरीपुर का सूरज..
अब भी याद करता है मुझे…
इस वार्तालाप के बीच..
मैडम चाय लेकर आ गई..
मैंने देखा.. किरणे..
उसके चेहरे पर भी, भर रही है..
नई रोशनी..
मेरी आँखे नम..
उसने इशारे से पूछा..
क्या हुआ.. मैंने कहा
कुछ नहीं…
फिर लगा… मेरी जड़े..
जिन्हे भूल रहा था..
अब भी मुझे..
संभाले हुए हैं…
दे रही हैं प्रेरणा…