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4 Nov 2024 · 1 min read

सूरज बहुत चढ़ आया हैं।

सूरज बहुत चढ़ आया हैं।
खिड़की पर
लेकिन कमरा रौशनी से
कही नदारद था।
मैने पर्दे हटाए
कमबख्त जाले जमे थे खिड़की पर
दिमाग को कुछ पीछे दौड़ाया
अभी याद आया दो साल पहले
ही तो साफ किया था खिड़की ओर खुद को
अरे हां शायद कहीं कुछ रह गया
सोचा बहुत बड़ी जिंदगी हैं
खिड़की के जाले फिर से साफ कर लेते हैं।
मेरा क्या हैं जैसे लोग मिलेंगे खुद को साफ करते चलेंगे

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