सूरज बन सकता है
यहीं शाश्वत सत्य, भला कब
हीरा खुद को जाने ।
उसकी प्रतिभा केवल उसका,
धारक ही पहचाने ।
तुलसी सूर कबीर जन्म से,
कवि तो नहीं हुए थे ।
किन्तु समय के साथ काव्य में,
ऊँचे शिखर छुए थे ।
तुलना नहीं किसी की जग में,
कोई कर सकता है ।
सूरज तो इस अखिल विश्व मे,
सूरज ही रहता है ।
किन्तु आचरण भी उपमाओं,
का कारण बनता है ।
जो जग को रौशन कर दे वह,
सूरज बन सकता है ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’