चंद्रयान-3 / (समकालीन कविता)
अब बदलेंगे
मिथक,
परिवर्तित होंगीं
चंद्रमा पर
सदियों-सदियों से
प्रचलित कहावतें ।
शुरू होगा
एक बार फिर
देश-दुनिया के
काव्य-मंचों पर
चंद्रमा पर केंद्रित
समकालीन आलाप ।
लेखकों की
मेज पर
तीव्र गति से
सरसरायेगी स्याही
और गूद दी जाएँगीं
कागजों की अनंत रीमें
चंद्रमा की यशोगाथा में ।
भित्ति-चित्रों-से
चिपक जाएँगे
गलियों-गलियों
चौराहों पर,
मंदिर-मस्जिद
बाजारों पर
चंद्रमा और चुनाव के
पहले अक्षर
‘च’ का केंद्रीयकरण
करते हुए
चुनावों के पोस्टर ।
अब ..
चंद्रमा के नाम पर
लहलहायेगी
कुछ समय तक
किसी खास
राजनीतिक दल की
चुनावी फसल ।
इसलिए
किसी अज्ञात गुफा में
भूमिगत होना ही पड़ेगा
वनिताओं/ललनाओं के
चेहरे को चाँद कहने
बाले प्रेमियों को ।
हाँ..
सिर्फ़ और सिर्फ़
कुछ थोड़े-से
सजग लोग ही पढ़ेंगे
इसरो के
चंद्रयान-3 द्वारा
अगले चौदह दिनों तक
भेजी जाने बाली
प्रमाणिक ख़बरें
और देखेंगे
चंद्रमा की धरती के
प्रमाणिक चित्र
शायद !
समझेंगे भी ।
क्योंकि सही और
अच्छी बात
समझने बाले
पहले भी थे गिने-चुने
और
आज भी हैं इने-गिने ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी