सूरज चाचा ! गुस्सा मत खाओ ।
सूरज चाचा तुम कैसे निष्ठुर हो,
बैठते क्यों नहीं आराम से घर में।
अपनी गर्मी चाची को दिखाओ,
निकाल देगी सारी अकड़ पल में।
धरती वासियों पर आग उगलते हो,
रहम नहीं जरा सा भी तुम्हारे मन में।
बरखा रानी को कैद कर रखा है,
काले बादल भी हैं तुम्हारे ही वश में।
हवाएं आलसी हो गई है चलती नहीं,
और गर चले भी ताव खाती है गर्मी में।
धरती बंजर होती जा रही है देखो जरा ,
पानी नहीं बचा किसी भी जलस्रोतों में।
माना की प्रकृति और मानव जीवन हेतु,
तुम्हारा जलते रहना बहुत जरूरी है सच में।
तुमसे उजाले मिलते है और शक्ति भी ,
जीवन ऊर्जा का संचार होता कण कण में।
तुम खुद जलकर जग को रोशनी देते हो ,
हर पल नई ऊर्जा भरते हो हमारे जीवन में।
हम तुम्हारी महानता को नमन करते है,
तुम्हारे उपकारों के ऋणी रहेंगे हर जन्म में।
मगर फिर एक करबद्ध विनती करते हैं ।
हमारे खातिर कुछ तो कमी करो तापमान में।