सूरज का उजाला
गर उसके पास सूरज का उजाला नहीं होता
चांद को तो कोई पूछने वाला नहीं होता
मैं जो मंज़िल की जुस्तजू में न भटका होता
फिर मेरे पांव में भी कोई छाला नहीं होता
सिर्फ हवा के सहारे पतंग उड़ नहीं पाती
जो डोर से किसी ने उसे संभाला नहीं होता
मेरी आंखों में शायद इतने आंसू नहीं होते
तेरा ख्वाब जो इनमें कभी पाला नहीं होता
बोझ तुम्हारे शानो पर इतना तो नहीं बढ़ता
आज का काम अगर कल पर टाला नहीं होता
ठुकरा तो रहे हो मुझे मगर याद करोगे एक दिन
हर शख्स इस क़दर चाहने वाला नहीं होता
दिल में ग़म का समंदर सा बन गया होता “अर्श”
तेरा ख्याल अगर दिल से निकाला नहीं होता