सूरज कभी ढलता नहीं।
सूरज कभी ढलता नहीं बस धरती घूमती है
शरहद का बेटा मरता नहीं बस धरती चूमती है
बो खड़ा सीमा पर दुश्मनों के हर एक बार को बांधता
बो उनके सीने पर अर्जुन सा निशाना है अब साधता
तो बो धनोधर कभी मरता नहीं बस अर्थी घूमती है
सूरज कभी ढलता नहीं बस अर्थी घूमती है।
बो धरा इस धरा पर धरा को नमन कर गया
बो देकर लहू इस बटन को अमर बतन बो कर गया
तो बो लहू जाया कभी होता नहीं आकाश गंगा नूभती है
सूरज कभी ढलता नहीं बस धरती घूमती है।।