सूनी होली
***** सुनी होली *****
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आखिर होली आई भी,
और झट से चली गई,
बिखेरती हुई गहरे रंग,
पर नहीं थे अपने संग,
पीले,नील ,लाल ,गुलाबी,
राह देखती गोरी नवाबी,
मखमली से चमकते रंग,
बेरुखी से भरे बेरंग ढंग,
फिर भी रहा सूना आँचल,
शायद था यह मैला आँचल,
सूखी रही नहीं भीगी छाती,
रंग न पाई रह गई शरमाती,
सुबह से हो गई शाम,
नहीं आये राधा के श्याम,
दीवाली जैसी रही फ़ीकी होली,
अब की बार न संग था हमजोली,
चलो कोई बात नहीं,
जीवन की ये आखिरी रात नहीं,
जब आएगी अगली होली,
पगले संग होगी पगली जोली,
नही रहेगी बेरंग सूखी काया,
साथ खड़ा होगा हमसाया,
मनसीरत पूरी होगी हर रीझ
नहीं रहेगी मन मे कोई खीझ—-।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)