*सूनी माँग* पार्ट-1
अशोक के गाँव के ज्यादातर लोग फौज में भर्ती है. इसलिए उसके गाँव को सब लोग फौजियों का गाँव कहते हैं. खुद अशोक के परिवार से जुड़े कई लोग फौज में है. अशोक के पिताजी भी चाहते थे वो फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करे. खुद अशोक भी यही चाहता था मगर ट्रेनिंग में पास ना हो पाने के कारण वो शहर चला गया कमाने के लिए. शहर में उसके एक रिश्तेदार (चाचाजी) का अच्छा व्यापार था उन्होंने अशोक को अपने यहाँ रख लिया और अशोक भी थोड़े समय में उनका विश्वासपात्र बन गया. इस दौरान उनका एकलौता लड़का दिनेश नया नया फौज में भर्ती हुआ. उसे देख कर अशोक कभी कभी उदास हो जाता था मगर वे उसे समझाते रहते थे कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. तुम मन छोटा मत कर और अशोक को बड़ा सुकून मिलता था. साल भर बाद अशोक के पिताजी अशोक के लिए लड़की ढूँढ रहे थे. मगर कोई अच्छा रिश्ता आ ही नहीं रहा था. वे परेशान रहने लगे. इस दौरान दिनेश की सगाई एक बड़े घर की इकलौती लड़की अंजली से हो गई. सर्दी की छुट्टियों में शादी का मुहूर्त निकला था. अब तो अशोक के कन्धों पर उनके पूरे व्यापार का भार आ गया. साथ ही शादी वाले दोनों घरों में भी आना जाना बढ़ गया दोनों घरों के लोग उससे काफी प्रभावित थे, उसकी पसंद, सोच और काम करने के तरीके से सब उससे प्रेम करने लगे. इधर गांव आने पर अशोक खुद की सगाई नहीं होने के कारण अपने पिताजी को उदास देख कर खुद भी उदास हो जाता था. वापिस शहर जाने पर उसके चाचाजी उसे एक ही बात कहते कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. तुम मन छोटा मत कर और अशोक को बड़ा सुकून मिलता. धीरे धीरे समय बीतता गया उधर सर्दियां शुरू हो गई और इधर शादी की तैयारियां. सब लोग खुश थे. नियत समय पर बारात निकली, खाना पीना हुआ, शादी हुई, रात भर सब लोग हंसी मजाक, नाच गाने में व्यस्त रहे. सुबह सभी रस्में पूरी की गई. दोपहर में अचानक माहौल गंभीर हो गया, दिनेश के दोस्तों ने उसके परिवार को बताया कि अचानक सीमा पर माहौल बदल गया है इसलिए हम सब को अभी निकलना पड़ेगा. दिनेश के लिए हम ऊपर बात करने की कोशिश करेंगे शायद उसकी छुट्टियां रद्द ना हो. मगर सभी गाँव वाले जानते थे कि ऐसा होना संभव नहीं है अतः दिनेश भी उनके साथ जाने को तैयार हो गया. किसी के मन में कोई सवाल नहीं था. खुद अंजली या उसके परिवार वालों के. सबने बड़े ही उत्साह के साथ उन सब को विदा किया. उनके जाने के बाद अशोक भी अपने पिताजी के साथ कुछ दिनों की छुट्टी लेकर गाँव आ गया. इधर सगाई ना होने के कारण अशोक के पिताजी की तबियत खराब रहने लगी मगर उन्होंने किसी को भनक नहीं लगने दी. एक सप्ताह बाद अशोक वापिस काम पर लौट आया और उधर सीमा पर तनाव काफी कम हो चुका था. दिनेश के पिताजी बड़े अफसरों से संपर्क करके दिनेश की छुट्टियों के बारे में पता करने की कोशिश करते रहते थे. इस तरह करीब छ महीने बीत गए बच्चों को गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई परिवार के लोगों को लग रहा था कि अबकी बार दिनेश आयेगा तो हम सब लोग साथ में घूमने जायेंगे. मगर अपनी छुट्टियों के बारे में ना दिनेश कुछ बता रहा था और ना ही उसके अफसर. …
…. अचानक एक दिन खबर आई कि एक आतंकवादी हमले में कुछ जवान शहीद हुए हैं उनमें दिनेश भी शामिल है. हर टीवी समाचारों में उनके शौर्य के कसीदे पढ़े जाते रहे. दो दिन बाद जब उसका पार्थिव शरीर गाँव में आया तो पूरे गाँव में सन्नाटा छा गया. दिनेश की बहादुरी के साथ साथ सब अंजली के बारे में विचार करके दुखी हो रहे थे. यूँ तो गाँव के कई लोग शहीद हुए हैं कई औरतें विधवा परन्तु ये शायद गाँव की पहली घटना थी जिसमें एक लड़की बिना सुहागरात मनाये करीब एक साल इन्तजार करके विधवा हुई है. अंतिम संस्कार तो सेना के नियमानुसार कर दिया गया. अशोक भी शहर चला गया. अब बचे सिर्फ परिवार और गाँव वाले. आगे क्या करें? इसी चिंता में अंजली और दिनेश के पिताजी उदास रहने लगे. एक दिन पुजारी जी उधर से निकल रहे थे, दोनों समधी पास पास बैठे थे उन्होंने पुजारी जी को प्रणाम किया, पुजारी जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. आप मन छोटा न करें. अचानक उन दोनों को अशोक की याद आई, दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव था. वे दोनों उठे और अशोक के घर की तरफ बढे…
क्रमशः…