सूना सूना-सा झूला
सूना सूना-सा झूला
// दिनेश एल० “जैहिंद”
एक तो चाँदनी रात और उस पे अकेला झूला ।
कहाँ हैं सारी सखियाँ, क्यूँ मुँह उनका है फूला ।।
क्यूँ साजन बिन झूला झूलन को निक ना लागे ।
सूना झूला, सूनी सेज व ये बैरन अँखियाँ जागे ।।
सुंदर हिंडोला, सुहावन रीतु से वंचित बालाएं ।
सावन के लुभावन मौसम क्यूँ नहीं उनको भाए ।।
मन क्यूँ है बोझिल, मन की ललक बूझी-बूझी-सी ।
छाया क्यूँ सन्नाटा नीम तले आत्मा क्यूँ है दुखी-सी ।।
मेघा गरजे रिमझिम बरसे लुभाए नाहिं फुहार ।
सावन पुकारे आओ प्यारे क्यूँ भाए नाहिं पुकार ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
13. 07. 2017