सूख गये उद्यान
दूषित है जलवायु अब,…सूखे कई प्रदेश !
चलो लगायें बाग हम,मिलकर सभी रमेश !!
माली उपवन का जहाँ,…..बन जाए सय्याद!
वहाँ सुनेगा कौन फिर, बुलबुल की फरियाद !!
हरियाली गायब हुई,.. ..सूख गये उद्यान !
और करो खिलवाड तुम,कुदरत से इन्सान!!
करे स्वंय ही हाथ से,माली अगर उजाड़ !
जाहिर है उद्यान में,.. व्यर्थ लगाना बाड़ !!
रमेश शर्मा.