सूख गया अनुराग !
सूख गया अनुराग !
भाई-भाई में हुई, जब से है तकरार !
मजे पड़ोसी ले रहें, काँधे बैठे यार !!
लुप्त हुई संवेदना, सूख गया अनुराग !
जब से सौरभ हैं हुए, दिल से बड़े दिमाग !!
बस यूं ही बदनाम है, दुश्मन तो बे-बात !
अपने ही करने जुटें, अपनों पर आघात !!
मैंने दिलो दिमाग से, सबको दिया निकाल !
ताकि तुम्हारे प्यार को, प्रिये ! रखूँ संभाल !!
हवा बहुत नाराज है, खिड़की दिखे उदास !
शहरों के झग़ड़े लिए, हैं अजीब अहसास !!
आओ बैठें पास में, समझें हम जज्बात !
तू शायर दोहा कहे, मैं ग़ज़लों से बात !!
न्यायालय में पग घिसे, खिसके तिथियां वार !
केस न्याय का यूं हुआ, ज्यों लकवे की मार !!
मंदिर के भीतर चढ़े, पत्थर को पकवान !
हाथ पसारे गेट पर, भूखा हैं इंसान !!
मेरे तेवर और हैं, उनके अपने तौर !
वो चाहे कुछ और हैं, मैं चाहूँ कुछ और !!
क्या भालू,क्या मेंढकी, क्या तीतर,क्या मोर !
हाथी के जूलूस में, फीका सबका शोर !!
वक्त करे है फैसला, कौन बड़ा फनकार !
कह ग़ालिब की बात को, पूर्ण हुआ गुलजार !!