सूखे शजर को छू कर हरा कर दिया।
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र।
ग़ज़ल
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सूखे शजर को छू कर हरा कर दिया,
बहार आऐगी ऐसा तुने,अवसर दिया।
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सोचा न कभी ज़हन मे फिर खिलुंगा,
बेरंन खिंजां ने ऐसा मुझको डर दिया।
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झुकती शाखो मे मेरी वो जान न थी,
तुमने जोश मृत शिराओं मे भर दिया।
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मै मयस्सर था मौत को मगर आ कर,
तुमने फिर खोल हयात का दर दिया।
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तन्हां राहो मे अचनाक आहट ने तेरी,
मुश्किल सा,आसान सफर कर दिया।
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सुन अब कैसे करे इबादत तेरी “जैदि”,
जब चौखट पर रख अपना सर दिया।
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मायने:-
शजर:- दरख़त
खिंजां :-पतझड़
मयस्सर:-प्राप्त
शायर:- “जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”