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25 Dec 2021 · 1 min read

सूखे वृक्ष

डॉ‌ ‌अरुण‌ ‌कुमार‌ ‌शास्त्री‌ ‌//‌ ‌एक‌ ‌अबोध‌ ‌बालक‌ ‌//‌ ‌अरुण‌ ‌अतृप्त‌*

पीता हूँ तब ही तो जी लेता हूँ
तेरे बाप से क्या लेता हूँ ।।

गम ही है अब मेरा सहारा
जिनके संग मैं जीता हूँ ।।

कोशिश कर कर हार गया
तुमको समझाना मुश्किल था ।।

सूखे सूखे वृक्षों पर तो अब
फूल खिलाना मुश्किल था ।।

राह बदल ली अब तो मैंने
परिवर्तन लाना मुश्किल था ।।

एक अकेला भाड़ क्या फ़ोड़ू
बात जगत में जाहिर है ।।

हाँथ मिलाऊँ कदम बढ़ाऊँ
फिर मंजिल पाना सीख लिया

तड़ग पड़ा जो रीता रीता
कैसे उसमें जल भर लाऊँ

सूखी सूखी नदिया को तो
पानी पिलाना मुश्किल था ।।

पीता हूँ तब ही तो जी लेता हूँ
तेरे बाप से क्या लेता हूँ ।।

गम ही है अब मेरा सहारा
जिनके संग मैं जीता हूँ ।।

कोशिश कर कर हार गया
तुमको समझाना मुश्किल था ।।

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