सुहानी सन्ध्या प्यार है जिंदगी
सुहानी संध्या प्यार है जिंदगी
******** गज़ल *********
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पर्वत के उस पार है जिंदगी,
सुहानी संध्या प्यार है जिंदगी।
रुके ना रुकती कहीं भी नहीं,
नदिया बहती धार है जिंदगी।
खुशी का भरता खजाना सही,
सच्चा सा व्यापार है जिंदगी।
कदम भरती ही नहीं है कभी,
दुनिया का आधार है जिंदगी।
नहीं देता साथ कोई जहाँ,
खुदा की दी तार है जिंदगी।
सहे मनसीरत अमिट वेदना,
कभी लगती भार है जिंदगी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)