सुहाग पर्व करवाचौथ
??”सुहाग-पर्व करवाचौथ”??
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‘प्रियतम’ पावन प्रीत हमारी निर्मल गंगाजल सी।
रहूँ ‘प्रेयसी’ सदा तुम्हारी आचमनी अंजल सी।
मैं तुलसी बन कर के महकूँ तेरे घर-आंगन की।
मधुर कोकिला बनी कूकती रहूँ तेरे बागन की।
“श्याम” तुम्हीं हो मेरे ‘उर’ के बनी रहूँ मैं “राधा”।
सदा तुम्हारी करूं अर्चना मिटे सकल भव-व्याधा।
मेरे ‘व्रत-त्यौहार’ तुम्हीं हो तुम्हीं ‘दिवाली-होली’।
रहूँ “सुहागन” जनम-जनम मैं बन तेरी ‘हमजोली’।
चपल-चन्द्रिका,’चरण-चन्द्र’ के चहुँदिश दरश कराए।
रहो “शतायु-चिरजीवी” ‘निर्जल-व्रत’ वर दे जाए।
सदा सुहागन,साजन संग,मैं सजूँ ,सहज-शरमाऊँ।
करूं कामना ‘कर जोड़े’ तब “करवाचौथ” मनाऊँ।
तुम्हीं तीज-त्यौहार, तुम्हीं हो “तेज़”- तपस्या मेरे।
“पावन परम पुनीत प्रेम” के नित-नित फिर लूँ फेरे।
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चौथ के चन्द्र आशीष तेरा रहे,
हर सुहागन का तन-मन सवेरा रहे।
सबके माथे की बिंदिया चमकती रहे,
सबके जीवन में खुशियों का डेरा रहे।।
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?तेज✏मथुरा