आखिरी शब्द
तेरी आँखों की बैचेनी को,
मैं तेरी आँखों में पढ़ता हूँ ।
तेरी पायल की तरन्नुम की,
हर उदासी को समझता हूँ ।
क्यूँ ठहरा है ज्वार लहरों का,
तेरी पलकों के किनारों पर ।
मैं हर उस बूंद को बाहर,
निकलने से पहले समझता हूँ !!
तुझे डर है कि हम बिछड़े,
तो मिल पाएंगे ना कभी ।
मुझे डर है कि मिलकर भी,
हम आगे मिल पाएंगे या नही ।
यही कश्मकश है मोहब्बत की,
जो ज़िस्म से नही संभलती है ।
कभी बनकर राम-सीता तो,
कभी राधा-कृष्ण बनकर सुलझती है ।
बजा दे संगीत तोड़कर तू,
अपने हाथों की हरी चूड़ियों को।
मिटाकर अपनी मांग का टीका,
सजा दे मेरे माथे को ।
आखिरी बार चूमकर अपने होठों से,
मेरी मिट्टी को अमर दे ।
जहाँ लगती है अज़ान मोहब्ब्त की,
वही मुझको विदा कर दे..!
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