!! “सुविचार” !!
!! “सुविचार” !!
“चिंतित अथवा निराश होने से संसार की कोई भी आपत्ति आज तक दूर नहीं हुई है । आपत्ति को दूर करने का उपाय है- उत्साहपूर्ण पुरुषार्थ । परिस्थितियों को आत्मसमर्पण कर देने से उनकी प्रतिकूलता यहां तक बढ़ जाती है कि फिर वे विनाश का ही कारण बन जाती हैं । यदि विनाश से बचना है, अपने जीवन को सार्थक करना है तो चिंता छोड़कर पुरुषार्थ
के लिए कमर कसिए ।”