सुलह
दोस्तों में भी कभी रार होती है
हां उनमें अक्सर तकरार होती है
मन भेद कभी होता नहीं मगर
मत भेद की गुंजाइश होती है
चलो फिर एक बार मिलते हैं
रिश्ते पुनः सामान्य करते हैं
भूल को कर नजरंदाज अपनी
सफर आगे का आसान करते हैं
चार दिन की जिंदगी में क्यों कलह
लांछन लगाना वो भी बेवजह
जिंदगी भगवान की अनुपम भेंट है
छोड़कर शिकवे गिले करते हैं सुलह
करते हैं सुलह….
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित