सुलभ – सोच
कितना कठिन हो गया है
किसी की हृदय गति को समझना
और फिर उसे इश्क का नाम देना
सुलभ नहीं,
और आसान भी नहीं
इश्क़ करना
करके बौछार प्रेम का
सांझ को संजोए ख़्वाब आंखों में,
और प्रियतम को फांश कर प्रेमजाल में
जकड़न सितारों का
पूछता है पलकों पर बिठाए चांद
क्या सुलभ है
इश्क़ की रांह
और क्या आसान है
समझना इश्क की गहराई को।