सुरभित मन्द समीर बहे।
वन उपवन मृग भरें कुलांचें ,
सुरभित मन्द समीर बहे।
चहुँ दिश फूल खिलें मनभावन,
प्रकृति छटा सर्वत्र रहे।
घिरे घटा घनघोर घनेरी
मगन मयूरा मस्त रहे
वन उपवन मृग भरें कुलांचें,
सुरभित मन्द समीर बहे।
दादुर झींगुर पपिहा बोले
तृषा तृप्त हो नीर बहे,
भव्य सुरम्य सुखद मनभावन
कल कल कलरव चहुँ ओर रहे
वन उपवन मृग भरें कुलांचें
सुरभित मन्द समीर बहे।