सुरज
सात घोड़ों के रथ पर सवार, आकर दुनिया में करता उजाला,
मैं जो आऊं प्रकाश लाऊं, अंधियारा को दुर भगाता।
मुझसे हीं धरती के चक्र हैं चलते, मुझसे हीं आठों पहर हैं पलते,
मुझसे हीं दिन और रात हैं, मुझसे हीं दिन और रात हैं ढलतें।
हर मौसम हर ऋतु मुझसे हीं है होकर गुजरती,
मैं ना रहूं तो सरदी रानी रह जाए हर पल ठिठुरती।
शाम को थककर जाकर मैं मां के आंचल में छुप जाऊं,
रात भर मां की गोद में मिठी लोरी सुन सो जाऊं।
चौथे पहर में मैया मुझसे कहती उठ जा बेटा राजा,
सारी सृष्टि राह निहारे जाकर तू आसमां पर छा जा।
आसमां में निरंतर चलता रहता हूं, अंधेरों से लड़ता रहता हूं,
घड़ी की टिक-टिक के साथ कर्म पथ पर बढ़ता रहता हूं।
रुकना नहीं है मेरा काम, मुझको नहीं दो पल आराम,
मैं अगर रुक जाऊंगा, समय चक्र हीं थम जायेगा।
मुझसे मानव चलना सीखो, कर्म पथ पर बढ़ना सीखो,
थक कर हार ना मानो तुम अंधेरों से लड़ना सीखो।
जग को है संदेशा, ये काम सदा करता हीं रहता,
ना मैं थकता, ना मैं रुकता, आगे की ओर बढ़ता हीं रहता।
यह सीख गांठ बांध लो तुम, निरंतर सफलता अगर चाहो तुम,
रुकना नहीं, झुकना नहीं, थकना नहीं, बढ़ना और निरंतर बढ़ते हीं रहना तुम।