सुरज
धूप देता है, छाँव करता है,
सूरज, हर सुबह उगता है,
न ही किसी से उम्मीद, न ही किसी से कोई मांग,
उगता है रोज वो, करता रहता है अपना काम,
गजब की आग है उसमे, जलता है वो बहूत निराला,
पर चमकता भी है वही है, जिसमे भड़कती है ज्वाला।
बोलते है लोग बहूत कुछ,
सुनाते है बहूत सी बातें,
फिर भी उगता है रोज वो,
होती है रोज एक चमक से मुलाकाते।
हर सुबह उसकी रोशनी आती है,
और अंधेरे को दूर भगाती है,
चाहे वो घोर अमावस की रात हो,
या हो चांदनी रात की अंधेरी अदा,
उग कर करती है रोज वो, उस अंधेरे को अलविदा।
ऐसी है हमारे हमसफर सूरज की कहानी,
जो न कभी मानता है हार, करता रहता है वो हर पल अपना काम,
बिना कुछ कहे , बिना आराम किये,
एक जोश के साथ, एक भड़कती ज्वाला के साथ,
हर अँधेरे को दूर भगाये,
दीपक तले भी, अंधेरा भगाये,
?
खुशबू कुमारी