सुरज दादा
सुरज दादा इतनी जल्दी
तुम कैसे उठ जाते हो।
अपने अन्दर इतनी तेज
तुम कहाँ से लाते हो।
बताओं हमें सुरज दादा
तुम आखिर क्या खाते हो।
कितना आग भरा तुममें
क्यों नहीं हमें बतलाते हो ।
शोर मंडल का सबसे बड़ा
तुम तारा क्यों कहलातें हो।
इतने दूर होने पर भी तुम
कैसे हमें दिख जाते हो।
सुबह- शाम जो आसमान
तुम लाली फैलाते हो
बताओ हमें सुरज दादा
वह रंग कहाँ से तुम लाते हो।
अपने अन्दर तुम इतनी उर्जा
इतना प्रकाश कहाँ से लाते हो।
कैसे हर दिन अपने समय पर
तुम रोज – रोज आ जाते हो।
इतना बता दो सुरज दादा
क्यों गर्मी में हम सबको
तुम इतना तपाते हो
और जाड़े में जब हम सबको
तेरी गरम ताप की ज्यादा
जरूरत होती है।
फिर उस समय पर तुम अपनी
गर्मी कहाँ छोड़कर आते हो।
सुबह सुबह तेरे आने से
कैसे चिड़ियाँ बोलने लग जाती है।
फूलों की कलियाँ भी कैसे
तेरे आने से खिल जाती है।
बताओं हमें सुरज दादा
यह जादू तुम कैसे कर लेते हो।
मिटा अंधेरा तुम आकाश में
कैसे प्रकाश से भर देते हो।
पौधों को भी तुम कहाँ से
और कैसे भोजन दे देते हो।
क्यों तुमको लोग हमेशा
प्राण रक्षक कहकर बुलाते है।
माँ कहती है हमें सदा ही
तुम हम सबकें देवता हो।
भर प्रकाश हम सब के जीवन में
तुम अंधेरा मिटा देते हो।
अपने जीवन के पाठ से
हम – सबको आगे बढ़ने की
प्रेरणा दे जाते हो।
आखिर में तुम यह सब
कैसे कर लेते हो।
~ अनामिका