सुमेरु, शास्त्र, विधाता छंद
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!! श्रीं !!
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सुमेरु छंद- 19 मात्रा
1222 1222 122
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कभी भी कर्म से घबरा न जाना ।
कदम तुम ठोस ही अपना उठाना ।।
सदा उसको मिली मंजिल चला जो ।
वही दीपक कहाता है जला जो ।।
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शास्त्र छंद- 20 मात्रा
1222 1222 1221
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चलेगा छोड़ ये दुनिया किसी रोज।
करेंगे लोग तेरे नाम का भोज ।।
नहीं कोई सुने उस रोज आवाज ।
मिलेगा धूल में सिर पर धरा ताज ।।
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विधाता छंद- 28 मात्रा
1222 1222, 1222 1222
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नहीं शीशा कभी चाँदी, हुआ बेशक चमकता है ।
दमकती चीज के पीछे, अरे मन क्यों बहकता है ?
छला करती सदा तृष्णा, मृगों सा क्यों भटकता है ?
चिड़ी का नीड़ है दुनियाँ, जहाँ बैठा चहकता है ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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