सुबह कभी तो आएगी
जिस भी उम्र मे जो,
चीज दिल को छूती है।
यादो में शामिल हो जाती है,
कोई गहरी संवेदना बचपन मे
जब पहली बार हमें छूती है।
परिभाषित होती लगती है
जैसे एक रूप में ढलकर,
आहट बनकर टहलकर
अपनी बात कह रही है।
जिंदगी का कोई पहलाअहसास,
जो हमारी रूह तक उतर जाता है।
वही हमारी जिंदगी हो जाता है।
अब भी जिंदगी के हर पड़ाव पर,
जिंदगी को जी लेना चाहती हूं।
किसी नगमे का दामन थाम लेती हूं।
आज भी मेरे अहसास के वहम
पूर्वाग्रह व नकारात्मक तंरगे,
मन के आसमान में छा जाते है।
रात का अंधियारा कर लेते है।
जीने की आस किसी कोने में,
बैठ कर सुबकने लगती है।
तब साहिर का ये गीत ,
मेरे अंदर गूँजने लगता है…….
इन काली सदियो के सर पे
जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे
तब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा
जब धरती नगमे गायेगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह हमी से आएगी।।