सुन सखे !
कुछ देख सोचकर तेरा हृदय तो जलता होगा ।
सूने तन में मन से,कोई भाव तो पलता होगा।
नदियाँँ ही नहीं, समुद्र भी तो चलता होगा।
सोच जरा ! ठहरा जहाज का पंक्षी भी तो रोता होगा !
बढ़े जो ताप रवि का,वो भी तो गिरता होगा।
चल माया की जलमाया में,मनुज भी तो मिटता होगा।
तू देख ! जरा पिंजरे का पंछी,कभी न कभी तो टूटता होगा ?
मजबूत प्राचीर कितनी भी क्यों न हो,कभी न कभी तो गिरती होगी।
राह कितनी लम्बी क्यों न हो,वो भी तो पूरी होती होगी।
सुन्दर कितनी क्यों न हो काया,वो भी तो मिटती होगी।
अंगारे कितने भी भभके,वो भी तो ठंडे होंगे।
सुन तू मेरी बात सखे! कभी तेरी रूह भी रोती होगी ।
फट जाता होगा हृदय तुम्हारा,और आत्मा धैर्य खोती होगी…।
देख जमाने की रूस्वाई,नम आँँखों से ममता छलका होगी।
क्षणिक जीवन का क्या रोना,मौत भी पल दो पल की होगी।
तू जिस पीड़ा से व्यथित है, वो भी बीते कल की होगी।
रो लेगी तू उस पर जितना, वो भी तो हल्की होगी।
दु:ख पर नाचोगी जितना,समीप उतना ही सुख होगा।
लो गी आधार सुखो का तुम,तो निकट उतना ही दु:ख होगा।
जिसने जितना त्याग किया,उसने उतना ही यश पाया होगा !
किसी व्रत के चलते सूर्यपुत्र, दानवीर कर्ण कहलाया होगा।
त्यागकर कर्ण को कुन्ती ने,कैसे अपने को बहलाया होगा ?
आँचल में छलके अमृत को,उसने कैसे रोका होगा।
निज उर की ममता ने क्या, उसको कभी न टोका होगा।
किस कारण से त्यागी ममता,वो रहा क्या मौका होगा ?
देख उसी की करनी को,भाग्य विधाता भी तो चौका होगा।
सुन तू मेरी बात सखे! नव निर्माण तुझे करना होगा।
छोड़ भाग्य की बात सखे! तुझे जग चरित्र से लड़ना होगा।
सूनेपन के तम में खोकर,क्या राह किसी ने पाई होगी।
निज कर्म के बूते पर ही,नारी ने देवी की पदवी पाई होगी ?
ज्ञानीचोर
9001324138