सुन लो गुहार
नष्ट कर दिये
वन तूने
मिटा दिए वृक्ष
खत्म किया
हरियाली का घेरा
कहीं कटती रैन
कहीं कटता सवेरा
अब तो
हर मकान की
मुंडेरों पर
हर छत बालकनी में डाला डेरा
हम बेजुबान बेसहारों का
अब बस यही
बसेरा
भला हो तेरा
यदि हो दया दृष्टि
एक कटोरी दाना-पानी
है तेरे हाथ में सब-कुछ
है यह नज़रिया तेरा।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©