सुन रे पहरेदार
!!श्रीं !!
(सरसी छंद)
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सुन रे पहरेदार !
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धन पर बैठे हैं विषधर से , लोग कुंडली मार ।
बहुत सजग तुझको रहना है, सुन रे पहरेदार ।।१
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झपट रहे हैं बाज चिरैया, सिसकें तड़फें रोज ।
ऐसा फैले जाल बाज सब , डर कर बैठें हार ।।२
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पौष मास की सर्द हवाओं, ने ठिठुराये गात ।
फागुन की सी ब्यार बहे तो, हो जाये उद्धार।।३
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खिली कली को ताक रहे हैं, कामातुर से लोग ।
माली सो मत जाना होगा, तू ही जिम्मेदार ।।४
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कैनवास पर अभी अधूरी, उभरी है तस्वीर ।
अभी रंग भरने हैं इसमें, कलाकार मत हार ।।५
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अरी लेखनी ! तुझे कसम है, लिखना केवल साँच ।
करना पर्दाफाश झूँठ का, फैला है व्यापार ।।६
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नहीं अँधेरे अच्छे लगते, डरते भोले लोग ।
‘ज्योति’ जले उजियारा फैले, दूर हटे अँधियार ।।७
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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