सुन री! सर्दी
बात सुन सर्दी मेरी,
मैं बजुर्ग बड़ा हूं।
तेरी इस ठिठुरन से,
मैं अकड़ा पड़ा हूं।
सुन री ! सर्दी कान लगाकर ,
मैं गरीब बड़ा हूं।
तेरी इस ठंड से ,
मैं उलझा खड़ा हूं।
एक और सुन सर्दी ,
तेरी बात है खोटी ।
तेरी धुंध और कोहरे ने,
बहुत घरों की खो दी है रोटी।
सर्दी की इस धुंध में,
पेट पापी की भूख ने ,
करा दी है दुर्घटनाएं बड़ी।
अनेक घरों के दीपकों की,
बुझी है ज्योति पड़ी।