सुन री तितली
*तु मन की अति प्यारी,
चंचल हृदय आंखों वाली,
चल आज कर हंसी-ठिठोली, सुन री तितली।
देख जग में आया नया बसंत,
लेकर सृष्टि की खुशियाँ अनंत ।
छुलूॅं जब आकाश का तारा,
मन हर्षाए जग सारा का सारा ।
बहती पवन संग मैं लहराई,
हर फूलों पर तू इठलाई ।
सोच-सोच कर मन मचली, सुन री तितली।
चुं-चु करती है चिड़िया ‘फुदकी’
! रुक-रुक! तू क्यों ऐसे कुदकी।
घर बाहर बनाए तू घोसला,
कभी न थकता तेरा होसला ।
कहो कहाँ सेआई तुम आई,हो,
कर्ण प्रिय रागिनी गाती हो,
चल मिल खेलें आंख-मिचोली, सुन री तितली ।
तू ‘गुल्ली’ बैठी डाली,
फल खाए जा लाली- लाली ।
देख किसी को छुप जाती,
फुदक- फुदक कर फिर आती,
मन की है तू भोली भाली,
चंचलता है तेरी मतवाली।
ले चल अपनी ही टोली, सुन री तितली।
मत घबराना ‘सिल्ली’ रानी,
तू तो है जल की रानी ।
पानी से लगता हमको डर,
छु कर कहीं न जाऊँ मर।
आ तुझको आकाश दिखाऊँ,
पंख लगा मैं परी बनाऊँ।
चल तितली ये भोली भाली। सुन री तितली।
रुक-रुक देखो आई”इल्ली रानी” ,
है इसकी सुन गजब कहानी ,
रोज पिलाती माँ को नाक से पानी,
मानो है यह सब की नानी ।
है नटखट में इतनी खड़ी,
सिल्ली से छोटी इरा बड़ी ।
है फिर भी यह सब में भली, सुन री तितली।
चुप चुप बैठी” इरा झा”,
सब मिल बोलो हा हा।
जल्दी आ जा एक दो तीन,
फिर बैठ बजाए तू बीन।
नाचे सब मिल थक- थक थैइया,
हिलती-डुलती चली है नैया ।
हैअभी ये नन्ही सी कली, सुन री तितली।
‘अप्पू-‘ पप्पू’ ‘टुन्नी’ ‘मुन्नी’ को देख खिलौना,
‘खट- खट” फट-फट’ को आया रोना ।
मेरी भी क्यों न नाम सलोना,
प्रमुदित करता मैं जग कोणा- कोणा ।
देख मुझे अब आया रोना,
जा छुप जाऊँ कोई बिछौना ।
तुम सब क्यों इतनी मचली, सुन री तितली।
घर बैठी जब सुन गयी ‘रानी’
बैठी सुनाए अपनी वाणी।
और सुनी जब वो ‘सुनिता’
ले भर चली आंखों में विनिता ।
क्यों रोता है मेरे लाल,
तुझसे ही जग है निहाल।
ये सब हैं तेरी ही अलि, सुन री तितली ।
रुक-रुक छूट गयी ‘सोनाली’
गयी हुई थी कल परसों ही मनाली।
चल झट पट लिख ले उसका नाम,
नहीं तो हो जाएंगे हम सब बदनाम,
सच पूछो आएगा अब और, मजा,
मन बगिया को खुब सजा।
है यह सब से मिली जुली, सुन री तितली।
सुन कलरव टुटा’शंकर’ ध्यान,
कर, उठा चले निज दिव्य बाण ।
सुन सुन रे! भाई ‘अश्विनी’,
क्यूँ रही लिख कविता बन तेजश्विनी ।
लग रहा कहीं गुड्डी का भान,
क्या छु सकती गगन का चांन ।
शोर मचाए गली गली, सुन री तितली ।
प्रमुदित है ‘गंगाधर’ संग ‘नीलम’ का आंगन,
विभूषित हुआ जैसे आनन का चानन,।
यूँ ही हंसता खिलता रहे इनका उद्यान,
नित नित नमन करुॅं हे भगवान।
सुख शांति छा जाए अखिल संसार।
दुख दर्द न आए किसी के द्वार ।
तू सब तो है आंखों की पुतली, सुन री तितली ।
? उमा झा