सुन रहे हैं जी–
सुन रहे हैं जी-
मौसम बदल रहा है शहर का
थोड़ा अपना मिजाज भी बदल लीजिये
चुनावी बयार बह रही है भैया
क्यों पड़े रहते हो ,दीवारों के मकान में
कभी चौक-चौपाल तक तो निकल भी लीजिये
जुमला उड़ा था ,कुछ बरस पहले
सुना था कोई आने वाले है
अरे ! आपने सुना नहीं था-
“अच्छे दिन आने वाले हैं”
हम सभ्य लोग है भाई
ताक-झाँक करने की आदत नहीं
आप अपने अच्छे दिन तो दिखाइए
चाय बनाना तो सीख ही गए होंगे
थोड़ा पकौड़े तलकर भी तो दिखाइए
राम को भूल गए हैं क्या
तो गौ माता के सहारे ही
इस बार बेड़ा पार करवाइए
अरे! हम आपके साथ खड़े है
टीवी पर दिखने वाले भगवान
आपके इलाके में पुष्पकविमान से आने वाले है
जरा ! एक बार जोर से ताली तो बजाइए
आप एक बार फिर से
वोट रूपी प्रसाद अपने भगवान को चखाइये
देखिये-बहनों और भाईयो
देश कहीं फिर से लुट न जाये
सिर्फ इसलिए और केवल इसलिये
चाहे इस बार भी आप अप्रैल फूल बन जाएं
आप फिर से वही फूल खिलाइए
गरीबी,बेरोजगारी रहती है तो रहे
ये चुनावी मुद्दे है बस
ये तो हमेशा ही रहने चाहिए
आप देश को बचाने के लिए
चायवाले को फिर से चौकीदार बनाइये–अभिषेक राजहंस