सुन बंजारन l
एक गीत
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सुन बंजारन l मेरे दिल की
तू प्रीति निभा मैं गीत लिखूँ…..
झंकृत कर दे मेरे मन को
सा रे गा मा संगीत लिखूँ….
आया सावन पतझर बीता
क्यो मन तेरा रीता रीता
तू डाल री प्रीति हिंडोला
फिर मै सावन के गीत लिखूँ……
मेरे सूने दिल की आशा
तू प्रेम ग्रंथ की परिभाषा
हो जीवन पथ पर साथ तेरा
फिर मै भी अपनी प्रीत लिखूँ……..
जैसे मोहन की तू राधा
बिन तेरे में आधा आधा
ले चल मुझको तू निधिवन में
फिर से मैं गोपी गीत लिखूँ….
झर झर झरने के जैसी है
हलचल नदियों के जैसी है
तू महक जरा फुलवारी सी
मै भवरा बन के गीत लिखूँ
तू देख जरा इन आँखो में
है छवि तेरी इन आँखो में
कर वादा तुम दूर न होना
तो फिर मैं अपनी प्रीत लिखूँ…..
सुन बंजारन l मेरे दिल की
तू प्रीति निभा मैं गीत लिखूँ…….
राघव दुवे ‘रघु’
इटावा