“सुन नारी मैं माहवारी”
मैं हूं प्रकृति की देन
मत तूं मुझसे घबरा
अंधविश्वास में मत उलझ
खुलकर अपनी पीड़ा बता,
क्यों छुपाए तूं मुझे
क्यों तूं हिचकिचाए
आत्मसम्मान समझ मुझसे
माहवारी आज चिल्लाए,
मेरी शुरुआत होने से ही
पूर्ण स्त्री जग तुझे बनाए
फिर भी क्यों चिंतित तूं
क्यों मेरा अस्तित्व दबाए,
मुझसे ही जुड़ कर तूं
मातृ धर्म निभा पाए
मेरे बिना तूं अधूरी
दुनिया तुझे बांझ बुलाए,
मीनू कहे वैज्ञानिक जमाना अब
आओ हम सब आगे बढ़ जाए
माहवारी चक्र की संकीर्णता को
अपने समाज से परे भगाएं,
पुरुष भी आगे बढ़कर
अपनी निज भागीदारी निभाएं
चक्र में नारी का सम्मान कर
माहवारी को पवित्र बनाएं।