सुन्दर फूलों के
मुक्तक
~~~
सुन्दर फूलों के खिलने का, नहीं रुका करता है क्रम।
भोर समय में ओस पिघलती, मौसम हो जाता है नम।
महक हवा में बिखरा करती, मोह लिया करती है मन।
कलियां धीरे से मुस्काती, भँवरे छेड़ रहे सरगम।
~~~
धीरे धीरे कदम बढ़ाना, राह नहीं जब है आसान।
कहीं शूल हैं इसमें बिखरे, साथी मत बनना अंजान।
अलग अलग आकर्षण लेकर, चौराहे आएंगे खूब।
भ्रमित कभी भी मत हो जाना, मंजिल को लेना पहचान।
~~~
– सुरेन्द्रपाल वैद्य