सुनो!
सुनो!
रे मानव!
अपनी उत्कट
लालसा के वशीभूत हो
शहरों को कंक्रीट का
जंगल बना दिया
शहरों से मन न भरा
तो आसपास के
गाँव, खेती योग्य भूमि को भी
क्रय कर आवास बना डाले,
कितनी पीढ़ियों के लिए
धन संचय करना है?
उजाड़ डाले जंगल
ये भी न सोचा
वन्य जीव आखिर
रहेंगे कहाँ
खाएँगे कहाँ?
अब जब वे
भूख से बेहाल
शहरों के घरों में
आँगन में
तुम्हारी गृहवाटिका में
लगी शाक-भाजियों को
कुछ खा-तोड़ कर
नष्ट कर डालते हैं
घर में लगे
पेड़ों के फल तोड़-गिरा जाते हैं
तब अपने श्रम को
व्यर्थ होता देख व्यथित होते हो
इन्हें डंडा लेकर भगाते हो,
कभी सोचा
इसके जिम्मेदार हम ही तो हैं
जब उजाड़ दिए
उनके आश्रय स्थल
तो वे विवश हो क्या करें,
सुनो!
वन्य जीव हैं
इनके हित में
जंगल खूब लगाओ
लगे हुए हैं जो जंगल
उन्हें कभी न घटाओ।
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई