‘सुनो स्त्री’
सुनो स्त्री!
अपनी इच्छाओं के उत्पीड़न की
चोटिल ध्वनि को
वृद्ध होती काॅंपती सी
अपनी उर्वरक ऑंखों की नमी को
स्वीकारो
नव-विकसित चेतना का साथ
मिला लो झुर्रीदार, थरथराते हाथों से
अपना मजबूत हाथ
बढ़ो स्त्री!
स्नेहिल सादगी से
सॅंवारो अपनी लुप्त होती संस्कृति को
रोको अपनी रचनात्मक विरक्ति को
चलो स्त्री!
आरंभ करो एक नया सफ़र
संपूर्णता के साथ
भर दो
कुरीतियों के उमस भरे
तम से घुटे कमरे में
नवसभ्यता के विकास का उजास
जुड़ो स्त्री!
एक नये धरातल से
चुनो स्त्री!
अपने मजबूत यर्थाथ को
गढ़ो स्त्री!
कुछ नये आयाम
और
चकित कर दो विश्व को
पुनः अपने सटीक शास्त्रार्थ से!
रश्मि ‘लहर’
लखनऊ