सुनो शकुनि
शुभ संध्या मित्रों!
सुनो शकुनि!
स्वस्थ तो जरूर होगे
कोरोना से बच भी गये होगे
तुमने
सब रिश्तों में तो
आग
लगा ही दी थी
अब सब बीमारी भी
आपस मे
उलझ रहे हैं
टायफाइड,मलेरिया,
फंगस-काले,सफेद,हरे,पीले
सभी
अपनी शक्ति को
प्रमाणित करने में लगे हैं
कौन सा पासा फेंका था
तुमने
किया शिकार
एक से हज़ार
बीमारी के दौर में भी
सब रिश्ते को
सबसे झुलसाया
जलवाया।
अभागे हैं हम
जो तुम्हें
पलने देते हैं
अपने आस-पास
तुम्हारी विकृत
मानसिकता को
होने देते हैं
युवा,परिपक्व
और
तुम अकेले ही
सब पर बहुत भारी
पड़ते हो।
शकुनि!
सत्य है
जीवित हो तुम
आज भी
युगों तक रहोगे भी
तुम
जब तक लोग
अपनों पर
अपनी आत्मा से ज्यादा
नहीं करेंगे
विश्वास
चलती रहेगी तुम्हारी।
शकुनि!
जीवित रहोगे तुम।
–अनिल मिश्र’अनिरुद्ध’