सुनो मैं मरा नहीं, अभी ज़िंदा हूँ
रुको अभी ना मनाना मेरी बर्बादी का जश्न…
घायल हूँ, लेकिन अभी नहीँ हुआ हूँ ज़मीन में दफ़्न…
थका हूँ लेकिन हौसले वाला परिंदा हूँ…
सुनो मैं मरा नहीं अभी ज़िंदा हूँ ।
मुझे नहीँ आती है तुम्हारी तरह मौक़ापरस्ती…
तभी तो अभी तक मिटी नहीँ मेरी हस्ती…
पर मुझे नहीँ आती है ज़बरदस्ती…
आराम से बनाऊँगा-सँवारूँगा मेरी बस्ती ।
अब मैं ही मेरा भार मैं ही मेरा कंधा हूँ…
सुनो मैं मरा नहीँ अभी ज़िंदा हूँ ।
हर ग़म को पीना सिखा दिया…
वक़्त ने मुझे जीना सीखा दिया…
कब तक सिलवाता अपने ज़ख़्म दूसरों से?
वक़्त ने मुझे अब सीना सिखा दिया ।
मैं ही ख़ुद का हकीम मैं ख़ुद ही कारिंदा हूँ…
सुनो मैं मरा नहीँ, अभी ज़िंदा हूँ ।
मेरा रोना अब पुरानी बात है…
अब मेरा हौसला मेरे साथ है…
नहीँ दिखाने अब किसी को अपने जज़्बात हैँ…
क्योंकि हर एक जज़्बात पर एक हुई एक नई वारदात है ।
वो गुनाह करके भी पाक साफ़ मैं मैं बेगुनाह होके भी क्यूँ शर्मिंदा हूँ?
सुनो मैं मरा नहीं, अभी ज़िंदा हूँ ।
शुक्रिया, मुझे कतरे से तूफ़ान बनाने के लिए…
मैं क्या हूँ ये अहसास करवाने के लिए…
शुक्रिया मुझे दबाने के लिए, सताने के लिए…
मुझे चिंगारी से ज्वालामुखी बनाने के लिए ।
मैं अब बना बंदा हूँ ।
सुनो, मैं मरा नहीँ, अभी ज़िंदा हूँ ।