सुनो बलात्कारी
सूरज भी खुश नहीं
आग बरसा रहा
निर्लज्ज निकम्मों को
सबक देना चाह रहा
चाँद भी उदास सा
चेहरा छिपा रहा
मासूम पर ज़बरदस्ती
का मातम मना रहा
शापित मानवता
पर शोक है जता रहा
राहों पर नग्न नृत्य
देख नहीं पा रहा
ज्वार के समंदर में
डूबना है चाह रहा ।
अपर्णा थपलियाल”रानू”
१०.०६.२०१७