सुनो बंजारे
सुनो बंजारे
तुम्हें भागती-दौड़ती जिंदगी के पीछे
दौड़ना पसंद है
और मुझे ठहराव पसंद है
नहीं, मैं नहीं चाहती हूँ
दिमाग़ खर्च करके इन
फजूल बातों के पीछे भागना
मुझे सुकूं के वो दो पल भी पसंद है
जो मैंने खुद के साथ बिताएँ
क्योंकि
मुझे ठहराव पसंद है
तुम सारा दिन भाग सकते हो
यहाँ- वहाँ बतिया सकते होऔ
दुनिया के साथ
कदम से कदम मिलाकर
चल सकते हो
पर मुझे अपने शब्दों के साथ
जुड़े रहना पसंद है
मेरे अंतस् में पलने वाले
विचारों की ऊर्जा से
खुश रहने का अवसर पसंद है क्योंकि
मुझे ठहराव पसंद है…..
तुम बेहिसाब किरदारों में जिंदा रहने का
हुनर जानते हो
मेरे पास केवल अहसास है
मेरा वजूद
मेरे गीतों में
कविताओं में
ग़ज़लों में
छंदों में घुला हुआ है
इस काव्य कानन के तरु संग
मुझे बतियाना पसंद है
एक शाख से दूसरी शाख संग
टहलना पसंद है क्योंकि
मुझे ठहराव पसंद है….
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)