सुनो पहाड़ की….!!! (भाग – ८)
परमार्थ निकेतन से गंगा घाट की ओर आते हुए हम बाजार होते हुए घाट पर पहुँच गये। अब तक गंगा आरती का समय हो गया था। हम भी आरती में सम्मिलित हो गये। दीप जलाकर माँ गंगा में प्रवाहित किया। संध्या के समय आरती में असंख्य व्यक्ति दीपक जलाकर गंगाजी में प्रवाहित कर रहे थे। पत्तल के मध्य फूलों में स्थित जगमगाते ये दीप जल में तैरते हुए एक आलौकिक आभा प्रस्तुत कर रहे थे। संध्या के समय होती आरती, घाट पर बजते आध्यात्मिक भजनों के मधुर स्वर, धीरे-धीरे बढ़ता अंधकार और जल में तैरते हुए जगमग दीपक समस्त वातावरण को अद्भुत, आलौकिक छटा प्रदान कर रहे थे। मन इस वातावरण में मानो रम ही गया था। इस अवसर पर एक बार पुनः मोबाइल के कैमरे ने इन मधुर स्मृतियों को सँजोने का कार्य किया। फिर समय को देखते हुए हमें आश्रम की ओर वापसी का निर्णय लेना पड़ा। हालांकि लौटने की इच्छा बिल्कुल नहीं थी।
वापसी के लिए एक बार फिर हमने जानकी सेतु वाला मार्ग चुना क्योंकि रामसेतु से आश्रम की दूरी अधिक थी। जानकी सेतु पार कर बाजार होते हुए हम रात्रि के भोजन के समय तक वापस आश्रम लौट आए। लौटकर खाना खाने के पश्चात कुछ देर आपस में बातचीत करने के बाद हम सोने के लिए बिस्तर पर लेट गये। अर्पण व अमित एक बार फिर अपने-अपने मोबाइल में शाम की तस्वीरें देखते हुए उन के विषय में चर्चा करने लगे । वह मुझे भी इसमें शामिल कर लेते किन्तु मैंने ज्यादा रूचि न लेकर आँखें बंद कर लीं क्योंकि थकान महसूस कर रही थी। आँखें बंद होने पर भी मेरा ध्यान उन दोनों की ओर बार-बार आकर्षित हो रहा था। अतः मैंने उन्हें बात करने से मना किया और आराम से सोने की कोशिश में लग गयी। नींद एकदम से आने को तैयार न थी। मन शाम की घटनाओं में उलझा सा था। जंगल, पहाड़, गंगा के घाट व आरती की मधुर स्मृतियाँ सहित बाजार की भीड़भाड़ सब एक साथ मस्तिष्क को घेरे हुए थे।
इन सबके बीच अचानक बीती रात की पहाड़ से बातचीत वाली घटना मस्तिष्क में चली आयी और मैं सोच में पड़ गयी।
यकायक महसूस होने लगा कि पहाड़ पुनः मेरे समक्ष आकर अपनी बात दोहरा रहा है। मुझसे कह रहा है कि देखा, तुमने मेरा हाल? मैं क्या था? क्या हो गया हूँ? इन प्रश्नों ने एक बार फिर मुझे उलझा दिया, मैं सोच में पड़ गयी थी। क्या सचमुच पहाड़ मुझसे बात करता है या यह मात्र मेरी कल्पना है। यदि यह कल्पना ही है तो ऐसा मेरे साथ ही क्यों, इसका उद्देश्य क्या हो सकता है?
(क्रमशः)
(अष्टम् भाग समाप्त)
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०३/०८/२०२२