Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2024 · 2 min read

सुनो पहाड़ की….!!! (भाग – ८)

परमार्थ निकेतन से गंगा घाट की ओर आते हुए हम बाजार होते हुए घाट पर पहुँच गये। अब तक गंगा आरती का समय हो गया था। हम भी आरती में सम्मिलित हो गये। दीप जलाकर माँ गंगा में प्रवाहित किया। संध्या के समय आरती में असंख्य व्यक्ति दीपक जलाकर गंगाजी में प्रवाहित कर रहे थे। पत्तल के मध्य फूलों में स्थित जगमगाते ये दीप जल में तैरते हुए एक आलौकिक आभा प्रस्तुत कर रहे थे। संध्या के समय होती आरती, घाट पर बजते आध्यात्मिक भजनों के मधुर स्वर, धीरे-धीरे बढ़ता अंधकार और जल में तैरते हुए जगमग दीपक समस्त वातावरण को अद्भुत, आलौकिक छटा प्रदान कर रहे थे। मन इस वातावरण में मानो रम ही गया था। इस अवसर पर एक बार पुनः मोबाइल के कैमरे ने इन मधुर स्मृतियों को सँजोने का कार्य किया। फिर समय को देखते हुए हमें आश्रम की ओर वापसी का निर्णय लेना पड़ा। हालांकि लौटने की इच्छा बिल्कुल नहीं थी।
वापसी के लिए एक बार फिर हमने जानकी सेतु ‌वाला मार्ग चुना क्योंकि रामसेतु से आश्रम की दूरी अधिक थी। जानकी सेतु पार कर बाजार होते हुए हम रात्रि के भोजन के समय तक वापस आश्रम लौट आए। लौटकर खाना खाने के पश्चात कुछ देर आपस में बातचीत करने के बाद हम सोने के लिए बिस्तर पर लेट गये। अर्पण व अमित एक बार फिर अपने-अपने मोबाइल में शाम की तस्वीरें देखते हुए उन के विषय में चर्चा करने लगे । वह मुझे भी इसमें शामिल कर लेते किन्तु मैंने ज्यादा रूचि न लेकर आँखें बंद कर लीं क्योंकि थकान महसूस कर रही थी। आँखें बंद होने पर भी मेरा ध्यान उन दोनों की ओर बार-बार आकर्षित हो रहा था। अतः मैंने उन्हें बात करने से मना किया और आराम से सोने की कोशिश में लग गयी। नींद एकदम से आने को तैयार न थी। मन शाम की घटनाओं में उलझा सा था। जंगल, पहाड़, गंगा के घाट व आरती की मधुर स्मृतियाँ सहित बाजार की भीड़भाड़ सब एक साथ मस्तिष्क को घेरे हुए थे।
इन सबके बीच अचानक बीती रात की पहाड़ से बातचीत वाली घटना मस्तिष्क में चली आयी और मैं सोच में पड़ गयी।
यकायक महसूस होने लगा कि पहाड़ पुनः मेरे समक्ष आकर अपनी बात दोहरा रहा है। मुझसे कह रहा है कि देखा, तुमने मेरा हाल? मैं क्या था? क्या हो गया हूँ? इन प्रश्नों ने एक बार फिर मुझे उलझा दिया, मैं सोच में पड़ गयी थी। क्या सचमुच पहाड़ मुझसे बात करता है या यह मात्र मेरी कल्पना है। यदि यह कल्पना ही है तो‌ ऐसा मेरे साथ ही क्यों, इसका उद्देश्य क्या हो सकता है?

(क्रमशः)
(अष्टम् भाग समाप्त)

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०३/०८/२०२२

240 Views
Books from Kanchan Khanna
View all

You may also like these posts

कुहुक कुहुक
कुहुक कुहुक
Akash Agam
नारी का जीवन
नारी का जीवन
Uttirna Dhar
रंग जाओ
रंग जाओ
Raju Gajbhiye
पहला प्यार
पहला प्यार
Dipak Kumar "Girja"
विश्व कप-2023 का सबसे लंबा छक्का किसने मारा?
विश्व कप-2023 का सबसे लंबा छक्का किसने मारा?
World Cup-2023 Top story (विश्वकप-2023, भारत)
উত্তর তুমি ভালো জানো আল্লা
উত্তর তুমি ভালো জানো আল্লা
Arghyadeep Chakraborty
पुराना साल जाथे नया साल आथे ll
पुराना साल जाथे नया साल आथे ll
Ranjeet kumar patre
मैं जाटव हूं और अपने समाज और जाटवो का समर्थक हूं किसी अन्य स
मैं जाटव हूं और अपने समाज और जाटवो का समर्थक हूं किसी अन्य स
शेखर सिंह
मंदिर में मिलेगा न शिवालों में  मिलेगा
मंदिर में मिलेगा न शिवालों में मिलेगा
Shweta Soni
आओ मिलकर सुनाते हैं एक दूसरे को एक दूसरे की कहानी
आओ मिलकर सुनाते हैं एक दूसरे को एक दूसरे की कहानी
Sonam Puneet Dubey
#कमसिन उम्र
#कमसिन उम्र
Radheshyam Khatik
मां के शब्द चित्र
मां के शब्द चित्र
Suryakant Dwivedi
किसान कविता
किसान कविता
OM PRAKASH MEENA
23/207. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/207. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
SHAMA PARVEEN
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
प्रेम के दरिया का पानी चिट्ठियाँ
प्रेम के दरिया का पानी चिट्ठियाँ
Dr Archana Gupta
यह ज़िंदगी
यह ज़िंदगी
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल(गुलाबों से तितली करे प्यार छत पर —)————————–
ग़ज़ल(गुलाबों से तितली करे प्यार छत पर —)————————–
डॉक्टर रागिनी
😢सीधी बात😢
😢सीधी बात😢
*प्रणय*
मंजिल की तलाश जारी है कब तक मुझसे बचकर चलेगी तू ।
मंजिल की तलाश जारी है कब तक मुझसे बचकर चलेगी तू ।
Phool gufran
🥀* अज्ञानी की कलम*🥀
🥀* अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बनी बनाई धाक
बनी बनाई धाक
RAMESH SHARMA
" रतजगा "
Dr. Kishan tandon kranti
क्या सही क्या गलत
क्या सही क्या गलत
Chitra Bisht
पार्टी-साटी का यह युग है...
पार्टी-साटी का यह युग है...
Ajit Kumar "Karn"
हमें खतावार कह दिया है।
हमें खतावार कह दिया है।
Taj Mohammad
वर्णिक छंद में तेवरी
वर्णिक छंद में तेवरी
कवि रमेशराज
रिश्तों की सच्चाई
रिश्तों की सच्चाई"
पूर्वार्थ
#पश्चाताप !
#पश्चाताप !
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
Loading...